तुलसी चयन ग्रहण काल में क्यों वर्जित है,
जानिए क्या है इसका कारण
3 days ago
Written By: ANJALI
हिंदू धर्म में तुलसी का महत्व अत्यधिक पवित्र माना गया है। इसे भगवान विष्णु की प्रिय माना जाता है और हर पूजा-अर्चना में तुलसी दल का विशेष स्थान होता है। लेकिन शास्त्रों के अनुसार ग्रहण काल में तुलसी पूजा और तुलसी पत्तों का चयन पूर्ण रूप से वर्जित है। मान्यता है कि इस समय तुलसी का तोड़ना या पूजन करना अशुभ फल देता है। आइए विस्तार से जानते हैं इसके पीछे का कारण और उपाय।
तुलसी चयन ग्रहण काल में क्यों वर्जित है?
पुराणों के अनुसार ग्रहण के दौरान वातावरण में राहु और केतु की नकारात्मक ऊर्जा सक्रिय हो जाती है। इस समय किसी भी पवित्र वस्तु को तोड़ना या छूना अपवित्र माना जाता है। तुलसी को माता का स्वरूप कहा गया है, इसलिए ग्रहण के समय तुलसी का चयन करने से धार्मिक नियमों का उल्लंघन होता है।
तुलसी पूजन ग्रहण के समय क्यों नहीं किया जाता?
ग्रहण काल में तुलसी दल अपवित्र माने जाते हैं। शास्त्रों का मानना है कि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी इस समय अर्पित तुलसी को स्वीकार नहीं करते। इसलिए तुलसी पूजा, तुलसी दल अर्पण और तुलसी सेवन ग्रहण काल में निषिद्ध है।
उपाय क्या हैं?
ग्रहण शुरू होने से पहले तुलसी दल तोड़कर रख लें।उन्हें गंगाजल छिड़ककर सुरक्षित स्थान पर रखें। ग्रहण समाप्त होने के बाद स्नान कर शुद्ध होकर भगवान को अर्पित करें।
धार्मिक मान्यता
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ग्रहण काल में तुलसी तोड़ने वाला व्यक्ति पाप का भागी बनता है। यही कारण है कि बुजुर्ग लोग घर में ग्रहण से पहले ही तुलसी दल सुरक्षित रखने की सलाह देते हैं, ताकि पूजा भी प्रभावित न हो और परंपरा भी बनी रहे।
आधुनिक दृष्टिकोण
विज्ञान की दृष्टि में ग्रहण एक खगोलीय घटना है, लेकिन धार्मिक परंपराएं अनुशासन और आस्था को बनाए रखने का कार्य करती हैं। तुलसी आयुर्वेद में औषधीय पौधा माना जाता है और इसका सम्मान करना स्वास्थ्य व जीवन के लिए भी लाभकारी है।