बांके बिहारी के हाथ में क्यों नहीं होती है बांसुरी,
क्या है बांसुरी का महत्व?
3 days ago
Written By: anjali
वृंदावन का बांके बिहारी मंदिर भक्तों के लिए आस्था और रहस्यों का केंद्र है। यहां की कई परंपराएं इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती हैं, जैसे कि मंदिर में एक भी घंटी नहीं होना और आरती के समय ताली नहीं बजाई जाना। लेकिन सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि बांके बिहारी के हाथ में बांसुरी नहीं होती। क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों? आइए जानते हैं इसका रोचक कारण।
बाल स्वरूप की कोमलता
बांके बिहारी मंदिर में भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है। मान्यता है कि उनके हाथ इतने कोमल हैं कि वे रोजाना बांसुरी का भार नहीं संभाल सकते। इसलिए, उन्हें साल में सिर्फ एक बार ही बांसुरी धारण करवाई जाती है।
शरद पूर्णिमा का विशेष दिन
हर साल शरद पूर्णिमा के दिन बांके बिहारी जी के हाथों में बांसुरी सजाई जाती है। इस दिन देशभर से हजारों भक्त इस दिव्य दृश्य के दर्शन के लिए आते हैं। पूर्णिमा की रात्रि में भगवान की इस अनोखी छवि को देखना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। इसके बाद बांसुरी को फिर से हटा दिया जाता है।
क्या है बांसुरी का महत्व?
भगवान कृष्ण का बांसुरी धारण करना उनके युवा स्वरूप का प्रतीक है, लेकिन बांके बिहारी मंदिर में उनके बाल रूप की पूजा होने के कारण यह परंपरा निभाई जाती है। यह विशेष व्यवस्था भक्तों के प्रति भगवान की स्नेहमयी लीला का हिस्सा मानी जाती है। बांके बिहारी मंदिर की यह अनूठी परंपरा भक्तों के मन में और भी श्रद्धा जगाती है। शरद पूर्णिमा के दिन बिहारी जी के बांसुरी धारण करने का अवसर एक दुर्लभ और पावन अनुभव है, जिसे देखने के लिए भक्त सालभर इंतजार करते हैं।