विनायक चतुर्थी 2025 : आज है गजानन की आराधना का पावन दिन,
जानिए शुभ मुहूर्त, महत्व और पौराणिक कथा
1 days ago Written By: Aniket Prajapati
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाने वाली विनायक चतुर्थी का व्रत आज, शनिवार 25 अक्टूबर 2025 को है। इस दिन विघ्नहर्ता भगवान गणेश की विशेष पूजा-अर्चना का विधान है। पुराणों में कहा गया है कि इस दिन दो बार पूजा करने का महत्व होता है — पहली बार दोपहर में और दूसरी बार मध्यरात्रि में। माना जाता है कि जो भी भक्त विनायक चतुर्थी पर पूरे विधि-विधान से व्रत करता है, उसके सभी कार्य सिद्ध होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। गणेश जी को सबसे शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता माना गया है, क्योंकि वे अपने भक्तों के केवल भाव देखते हैं।
विनायक चतुर्थी का महत्व इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से जीवन के सभी दुख, संकट और बाधाएं दूर हो जाती हैं। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन व्रत और पूजा करने से सुख-समृद्धि, धन-संपत्ति, ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति होती है। जो भक्त इस दिन पूरे नियम से गणपति बप्पा की पूजा करते हैं, उनके जीवन में सौभाग्य बढ़ता है। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि इस दिन भगवान गणेश की दो बार पूजा करनी चाहिए, ताकि उनके आशीर्वाद से जीवन में कभी कोई विघ्न न आए।
विनायक चतुर्थी 2025 आज
विनायक चतुर्थी 2025: तिथि और पूजा का समय
चतुर्थी तिथि प्रारंभ: 25 अक्टूबर, सुबह 1:19 बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त: 26 अक्टूबर, सुबह 3:48 बजे
अभिजित मुहूर्त: सुबह 4:46 से 5:37 तक
विजय मुहूर्त: दोपहर 1:57 से 2:42 तक
गोधूलि मुहूर्त: शाम 5:42 से 6:07 तक
रवि योग: 25 अक्टूबर सुबह 7:51 से 26 अक्टूबर सुबह 6:29 तक
उदिया तिथि के अनुसार, विनायक चतुर्थी का व्रत आज मनाया जाएगा।
विनायक चतुर्थी की पौराणिक कथा
एक बार माता पार्वती और भगवान शिव चौपड़ खेल रहे थे। खेल में विवाद हुआ कि जीत-हार का फैसला कौन करेगा। तब माता पार्वती ने घास-फूस से एक बालक बनाया और उसमें प्राण प्रतिष्ठा की। खेल में पार्वती जी तीन बार जीतीं, लेकिन बालक ने गलती से भगवान शिव को विजेता घोषित कर दिया। इससे माता पार्वती क्रोधित हो गईं और बालक को कीचड़ में रहने का श्राप दे दिया। बालक ने क्षमा मांगी, तो माता ने कहा कि एक वर्ष बाद जब नागकन्याएं आएंगी, तब उनके बताए अनुसार विनायक चतुर्थी का व्रत करना, जिससे सभी कष्ट दूर होंगे।
एक वर्ष बाद नागकन्याएं आईं और उन्होंने बालक को गणेश व्रत की विधि बताई। बालक ने 21 दिनों तक पूरे श्रद्धा भाव से व्रत किया। उसकी भक्ति देखकर गणपति बप्पा प्रसन्न हुए और उसे मनोवांछित वरदान दिया। बालक ने स्वस्थ होने और कैलाश पर्वत जाने की इच्छा जताई। भगवान गणेश ने उसे वरदान दिया और वह बालक कैलाश पहुंच गया। इस घटना के बाद भगवान शिव ने भी वही व्रत किया, जिससे माता पार्वती का रुष्ट भाव समाप्त हो गया। बाद में माता पार्वती ने भी 21 दिनों तक गणेश जी की पूजा की, और अंततः उनका पुत्र कार्तिकेय स्वयं उनसे मिलने आए। इस प्रकार से विनायक चतुर्थी का व्रत पारिवारिक एकता, सुख और समृद्धि का प्रतीक बन गया।