उत्पन्ना एकादशी 2025: 15 नवंबर को मनाई जाएगी,
जानें पौराणिक कथा और व्रत का महत्व
1 months ago
Written By: Aniket Prajapati
मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। इस वर्ष यह पावन तिथि 15 नवंबर 2025 को मनाई जाएगी, जबकि व्रत का पारण 16 नवंबर को किया जाएगा। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से जीवन के अंधकार दूर होते हैं और सुख-समृद्धि का वास होता है। पौराणिक कथा के अनुसार इसी दिन देवी एकादशी का प्राकट्य हुआ था जिन्होंने दैत्य मुर का वध कर देवताओं की रक्षा की थी।
कैसे पड़ा उत्पन्ना एकादशी नाम?
शास्त्रों में वर्णित कथा के अनुसार, एक समय भगवान विष्णु योगनिद्रा में विश्राम कर रहे थे। तभी मुर नाम का अत्याचारी राक्षस उन पर प्रहार करने पहुंचा। उसी क्षण भगवान विष्णु की देह से एक तेजस्विनी देवी प्रकट हुईं और उन्होंने मुर का संहार कर दिया। इसी दिन देवी का प्राकट्य हुआ, इसलिए इस तिथि को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि इस व्रत से तमाम बाधाएँ खत्म होती हैं और भक्त को दिव्य आशीर्वाद मिलता है।
दैत्य मुर की अत्याचार कथा
सतयुग में मुर नाम का दानव बड़ी शक्ति और अहंकार से भरा था। उसने अपनी ताकत के बल पर इंद्र, आदित्य, वसु, वायु, अग्नि समेत सभी देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। भयभीत देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और सहायता की गुहार लगाई। भगवान शिव ने देवताओं को भगवान विष्णु की शरण में जाने की सलाह दी, क्योंकि वही इस संकट का अंत कर सकते थे।
विष्णु से देवताओं की गुहार
सभी देवता क्षीरसागर पहुंचे और प्रभु विष्णु की स्तुति करते हुए अपनी व्यथा सुनाई—कि दैत्य मुर ने स्वर्ग छीन लिया और वे सब दिशाओं में भटक रहे हैं। देवताओं ने मुर की शक्ति, उसके अहंकार और उसके द्वारा की गई अत्याचारों का वर्णन किया। तब भगवान विष्णु ने आश्वासन दिया कि वे स्वयं इस संकट का समाधान करेंगे और मुर का वध करेंगे।
चंद्रावती नगरी में महासंग्राम
भगवान विष्णु देवताओं के साथ चंद्रावती नगरी पहुंचे जहां दैत्य मुर सेना सहित गर्जना कर रहा था। उसका आतंक देखकर देवता भयभीत हो उठे। भगवान विष्णु ने युद्धभूमि में प्रवेश किया और दैत्यों का संहार किया। अंत में केवल मुर शेष बचा, जो इतनी शक्ति से लड़ रहा था कि प्रभु के बाण भी उस पर पुष्प की तरह असर करते थे। दस हजार वर्षों तक युद्ध चलता रहा, पर मुर नहीं मरा।
देवी एकादशी का प्राकट्य
लंबे युद्ध से थककर भगवान विष्णु बद्रिकाश्रम पहुंचे और हेमवती नामक गुफा में विश्राम करने लगे। मुर ने अवसर देखते हुए गुफा में प्रवेश किया और सोते हुए विष्णु का वध करने का प्रयास करने लगा। उसी क्षण भगवान के शरीर से एक तेजोमयी देवी प्रकट हुईं। उन्होंने मुर को युद्ध के लिए ललकारा और घोर युद्ध के बाद उसका अंत कर दिया।
विष्णु का आशीर्वाद और एकादशी की महिमा
योगनिद्रा से जागकर भगवान विष्णु ने देवी को धन्यवाद दिया और कहा—“आपका जन्म एकादशी तिथि पर हुआ है, इसलिए आज से यह दिन उत्पन्ना एकादशी कहा जाएगा। जो भी भक्त आपकी पूजा करेगा, उसे मेरी विशेष कृपा और रक्षा प्राप्त होगी।” तभी से यह तिथि अत्यंत पावन और कल्याणकारी मानी जाती है।