परिवर्तिनी एकादशी पर इस तरह करें पूजा,
भगवान विष्णु के मंत्र से मिलेगा मनचाहा वरदान
6 days ago
Written By: ANJALI
हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का अत्यंत विशेष महत्व माना गया है। यह तिथि न केवल भगवान विष्णु बल्कि मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने का भी श्रेष्ठ अवसर होती है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन व्रत करने और विष्णु जी की आराधना करने से साधक को शुभ फल, पुण्य और जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। कई श्रद्धालु इस दिन निर्जला व्रत भी रखते हैं, जिसे अत्यंत फलदायी और कठिन व्रतों में गिना जाता है।
एकादशी व्रत की पूजा विधि
प्रातःकालीन संकल्प – एकादशी के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें और भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
मंदिर की शुद्धि – घर या मंदिर को गंगाजल से शुद्ध करें और पूजा स्थल को साफ-सुथरा बनाएं।
विष्णु जी की स्थापना – चौकी पर आसन बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
दीप प्रज्वलन – शुद्ध घी अथवा तेल का दीपक जलाएं और धूप, दीप तथा कपूर अर्पित करें।
भोग अर्पण – भगवान विष्णु को फल, मिठाई, पंचामृत, गुड़, चने और पंजीरी अर्पित करें। ध्यान रखें कि भोग में तुलसी दल अवश्य शामिल करें।
कथा और आरती – एकादशी व्रत कथा का पाठ करें और अंत में विष्णु जी की आरती उतारकर प्रसाद का वितरण करें।
जागरण और दान का महत्व
एकादशी की रात में भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करना शुभ माना जाता है। साथ ही, इस दिन दान-दक्षिणा करने से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है।
व्रत पारण का शुभ समय
व्रत का पारण द्वादशी तिथि में किया जाता है। श्रद्धालु पहले भगवान विष्णु की पूजा करें और फिर व्रत तोड़ें। इस बार पारण का शुभ मुहूर्त इस प्रकार रहेगा –
पारण का समय – 4 सितंबर दोपहर 1:36 बजे से शाम 4:07 बजे तक
भगवान विष्णु के मंत्र
व्रत के दौरान भगवान विष्णु के मंत्रों का जप अवश्य करना चाहिए। इससे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, सुख-समृद्धि और प्रभु कृपा बनी रहती है। एकादशी व्रत केवल धार्मिक आस्था ही नहीं, बल्कि आत्मिक शांति और मन की शुद्धि का भी साधन है। जो भी भक्त श्रद्धा और नियमपूर्वक इस व्रत को करते हैं, उन्हें निश्चित रूप से जीवन में शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
1. ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय नमः।
2. ॐ वासुदेवाय विघ्माहे वैधयाराजाया धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात् ||
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे अमृता कलसा हस्थाया धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात् ||
3. मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।
मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥
4. शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्
विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्॥