छठ महापर्व 2025: जानिए नहाय-खाय से उगते,
सूर्य को अर्घ्य देने तक की सभी तिथियां और पूजा का महत्व
5 days ago Written By: Aniket Prajapati
भारत के सबसे पवित्र और आस्था से भरे पर्वों में से एक छठ महापर्व का इंतज़ार पूरे देश में श्रद्धा और उत्साह के साथ किया जा रहा है। यह पर्व विशेष रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है। इसके अलावा दिल्ली, मुंबई और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी छठ घाटों पर लाखों श्रद्धालु श्रद्धा के साथ सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते नजर आते हैं। छठ पर्व की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें दिखावे से ज्यादा शुद्धता, संयम और भक्ति पर जोर होता है। चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व व्रतियों की अटूट आस्था और आत्मसंयम का प्रतीक है।
छठ महापर्व 2025 की तिथियां इस वर्ष छठ पर्व की शुरुआत शनिवार, 25 अक्टूबर 2025 से होगी और समापन मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025 को होगा। आइए जानते हैं चारों दिनों की तिथियां और उनका धार्मिक महत्व—
नहाय-खाय: शनिवार, 25 अक्टूबर 2025 (कार्तिक शुक्ल चतुर्थी)
खरना: रविवार, 26 अक्टूबर 2025 (कार्तिक शुक्ल पंचमी)
अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य: सोमवार, 27 अक्टूबर 2025 (कार्तिक शुक्ल षष्ठी)
उदीयमान सूर्य को अर्घ्य: मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025 (कार्तिक शुक्ल सप्तमी)
पवित्रता से आरंभ होता है व्रत छठ महापर्व की शुरुआत ‘नहाय-खाय’ से होती है। इस दिन व्रती स्नान करके शरीर और मन की शुद्धि करते हैं। उसके बाद सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। परंपरा के अनुसार, इस दिन लौकी-भात और दाल का सेवन शुभ माना जाता है। यही भोजन छठ व्रत की शुद्ध शुरुआत का प्रतीक है।
आत्मसंयम और श्रद्धा का दिन अगले दिन यानी पंचमी तिथि को खरना मनाया जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जल उपवास रखते हैं और शाम को गुड़ और चावल से बनी खीर (प्रसाद) ग्रहण करते हैं। खरना के बाद 36 घंटे का निर्जला उपवास आरंभ होता है, जो इस पर्व का सबसे कठिन और पवित्र हिस्सा माना जाता है। इस समय व्रती पूरे समर्पण और श्रद्धा के साथ भगवान सूर्य और छठी माई की आराधना करते हैं।
अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य: डूबते सूर्य को समर्पण षष्ठी तिथि के दिन शाम को व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसे छठ पर्व का सबसे महत्वपूर्ण क्षण माना जाता है। घाटों पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु एकत्र होते हैं और सूर्यास्त के समय जल में खड़े होकर सूर्य देव की उपासना करते हैं। इस दौरान पूरे वातावरण में छठ गीतों की गूंज और दीपों की रौशनी अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करती है।
उदीयमान सूर्य को अर्घ्य: व्रत का समापन छठ पर्व का अंतिम दिन सप्तमी तिथि होता है। इस दिन व्रती सुबह-सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही छठ व्रत का पारण (समापन) किया जाता है। इसके साथ ही यह चार दिवसीय महापर्व श्रद्धा, भक्ति और शुद्धता के प्रतीक के रूप में पूर्ण होता है।
छठ महापर्व का महत्व छठ पूजा को सूर्य उपासना का सबसे प्राचीन पर्व माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीराम और माता सीता ने भी अयोध्या लौटने के बाद छठ पर्व किया था। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सूर्य और प्रकृति की ऊर्जा के प्रति आभार व्यक्त करता है।